जैन धर्म में मकर सक्रांति का महत्व
जैनागम के अनुसार मकर संक्रांति के दिवस चक्रवर्ती को सूर्य पर स्थित अकृत्रिम जिनालयों के भरत ऐरावत क्षेत्रों से दर्शन होते हैं, जिसके कारण वह प्रसन्नतापूर्वक दान आदि कार्य करता है। मकर संक्रांति भी इन्हीं त्योहारों में से एक है। संक्रांति का अर्थ होता है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है। मकर संक्रांति का संबंध ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। यह पर्व अपना धार्मिक महत्व भी रखता है। इस दिन उत्तरायण के समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृ यान कहा गया है। संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायण में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं। इस दिन के बाद हर दिन तिल-तिल बढ़ता है इसलिए इसे तिल संक्रांति भी कहते हैं।
![जैनागम के अनुसार मकर संक्रांति](https://modi-infotech.in/wp-content/uploads/2023/01/Bharat_Chakravarti-209x300.jpg)
इस दिन सूर्य वर्ष में एक बार मकर राशि में आता है, इस दिन प्रथम जैन तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान के पुत्र भरत चक्रवर्ती (जिनके नाम पर देश का नाम भारत हुआ) ने सूर्य में स्थित जिनबिम्ब की अपने राजमहल की खिड़की से खड़े होकर पूजा करी । इससे पूर्व स्नान किया तथा पूजा के पश्चात लड्डू का वितरण किया
बहुत ही कम जैनों को इस दिवस की वास्तविकता के बारे में जानकारी है जो कि प्रमाणिकता के साथ जैन दर्शन में उल्लेखित है।
जैन धर्म और मकर संक्रांति
मकर संक्रांति एक लोक पर्व है लेकिन जैन धर्म में इस पर्व का कोई विशेष महत्त्व नहीं है
आइए जानते हैं मकर संक्रांति लोक पर्व क्यों है
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों।
मकर संक्रांति फसल से जुड़ा हुआ त्योहार है जिसे सर्दियां समाप्त होने के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य दक्षिणयान से मुड़कर उत्तर की ओर रुख करता है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है।
सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है क्योंकि सूर्य की गति निश्चित रहती है
आइए अब जानते हैं कुछ तथ्य
ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति से उत्तरायण की शुरुआत मानी जाती है लेकिन पंचांग के अनुसार हर साल उत्तरायण २२ दिसंबर से २१ जून तक होता है एवं दक्षिणायण २२ जून से २१ दिसंबर तक होता है
कुछ जैन श्रावकों की मान्यता यह बन गई है की मकर संक्रांति के दिन भरत क्षेत्र के चक्रवर्ती सूर्य में स्थित जिन बिम्बों के दर्शन करते हैं और इसलिए कुछ जैन श्रावक मकर संक्रांति को जैन धर्म से जोड़ देते हैं लेकिन यह एक मिथ्या धारणा है।
तिलोयपण्णत्ती
अध्याय ७ की गाथा संख्या ४३० से ४३३ तक के विशेष अर्थ में यह स्पष्ट उल्लेख आया है कि जब श्रावण मास में सूर्य की कर्क संक्रांति होती है और सूर्य अपनी अभ्यन्तर वीथी में स्थित होता है तब अयोध्या नगरी के मध्य में अपने महल के ऊपर स्थित भरत आदि चक्रवर्ती निषध पर्वत के ऊपर उदित होते हुए सूर्य बिम्ब को देखते हैं और सूर्य विमान में स्थित जिन बिम्बों के दर्शन करते हैं।
जब सूर्य निषध पर्वत के ऊपर अपनी प्रथम वीथी में होता है तब वह भरत क्षेत्र से ४७२६३ ७/२० योजन दूर होता है और यही चक्षुस्पर्श क्षेत्र का उत्कृष्ट प्रमाण है। चक्रवर्ती के चक्षुओं में इतनी उत्कृष्ट क्षमता होती है और उसी वजह से वो सूर्य में स्थित जिन बिम्बों के दर्शन कर लेते हैं।
इस प्रमाण से ये बात सिद्ध होती है की चक्रवर्ती से जुडी यह घटना श्रावण माह में कर्क संक्रांति के दिन होती है। इस वर्ष यह कर्क संक्रांति १६ जुलाई २०१९ को होगी। इसलिए इस घटना को मकर संक्रांति से जोड़ना मिथ्या है।
मकर संक्रांति की जैन धर्म से जुड़ी कोई अन्य विशेषता ग्रंथों में उल्लेखित नहीं है इसलिए मकर संक्रांति जैन पर्व नहीं है
कुछ जैन भाई मकर संक्रांति को जैन पर्व मानकर और अन्य लोगों के देखा देखी इस दिन पतंग उड़ाते हैं इन पतंगों में लगा हुआ मांजा काँच के पाउडर से तैयार किया जाता है अथवा उससे भी घातक अब चाइनीज़ मांजे बाजार में बिकने लगे हैं। इन मांजों की डोर से प्रति वर्ष अनेक पक्षी घायल हो जाते हैं और मर भी जाते हैं। यहाँ तक की कभी कभी तो इनमें अटक कर इंसानों की भी दुर्घटनाएँ हो जाती है।
इसी वजह से पतंग उड़ा कर पक्षियों आदि की हिंसा करने वाले लोगों को महा पाप लगता है और एक पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा का दोष भी लगता है
संकल्प
अहिंसा प्रधान जैन धर्म के सच्चे अनुयायी यह संकल्प करें की मकर संक्रांति के इस लोक पर्व में हम पतंग नहीं उड़ाएंगे और पक्षियों आदि के घात में निमित्त नहीं बनेंगे और इस पर्व में केवल लोक व्यवहार की आवश्यकता के अनुसार ही आचरण करेंगे